भोजनालय
अन्नपूर्णा रसोई – आश्रम का यह सबसे महत्वपूर्ण एवं आवश्यक अंग है। इसके बिना आश्रम की कल्पना करना भी नामुमकिन है। इसलिए पूज्य महाराज श्री ने सबसे पहले इस का ही कार्य प्रारम्भ किया। जिसे अन्नपूर्णा भण्डार या अन्नपूर्णा रसोई के नाम से जाना जाता है। माता अन्नपूर्णा प्राणी मात्र के लिए भोजन का प्रबन्ध करती हैं। इसलिए शास्त्रों में इनकी वन्दना की गई है। अन्नपूर्णा सदा ही पूर्ण रहती है, ये सदा शिव-विश्व के कल्याण करने वाले शंकर की प्राण प्रिया है। शास्त्रों मे अन्न दान का महत्व सर्वोपरि बतलाया गया है। आध्यात्मिक संसार में और सनातन परम्परा में उस देवी को अन्नपूर्णा के नाम से अभिहित किया गया है। श्री सिद्धदाता आश्रम की स्थापना से ही अक्षय-अन्नपूर्णा भण्डार की परम्परा चली आ रही है। प्रारम्भ में महाराज श्री स्वयं अपने हाथों से बनाकर तथा परोस कर भक्तों को भोजन करवाते थे।
वैसे प्रतिदिन हजारों-भक्तों के लिए भोजन व्यवस्था प्रात:, दोपहर तथा सायं निरन्तर की जाती है। विशेष परिस्थितियों में तथा उत्सवों में भक्तों की संख्या हजारों में पहुँच जाती है।
इसका आध्यात्मिक महत्व के साथ लौकिक महत्व भी है। शास्त्रों में बताया गया हैं की अन्नदान देने वाले के दश पूर्वज तथा दश वंशज और दाता (इक्कीस पीढ़ी) का कल्याण हो जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए पूज्य गुरु महाराज जी ने रसोई शाला का निर्माण सर्व प्रथम कराया था और यह कार्य तब से अब तक अनवरत जारी है।