श्री गुरुजी

"आत्मा वैजायते पुत्र" शास्त्रीय सिद्धान्तों के आलोक में पिता की आत्मा ही पुत्ररूप में उनके गुणगणों से युक्त होकर धराधाम पर अवतरित होती है। इसी परिवेश में अनन्त श्रीविभूषित वैकुण्ठवासी श्रीमज्जगद्गरु सुदर्शनाचार्य के आत्मज ज्येष्ठ पुत्र एवं शिष्य अनन्त श्रीविभूषित इन्द्रप्रस्थ एवं हरियाणा पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य जी महाराज का जन्म योग्य पिता के योग्य पुत्र के रूप में हुआ है तथा वे अपने पिता के समान ही ईश्वरीय एवं आध्यत्मिक कार्यों में निरन्तर संलग्न हैं। शेमुषी प्रतिभा के धनी, जीवन के प्रारंम्भिक काल से ही आध्यात्म-पथ पर अग्रसर होते हुए 1989 से ही वह आश्रम के निर्माण एवं अन्य गतिविधियों में सदैव अपना अमूल्य योगदान देते आ रहे हैं।। इसलिए भविष्य दृष्टा परम पूज्य गुरु महाराज जी ने सिद्धदाता आश्रम का भूमिपूजन का कार्य स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य जी के कर कमलों के द्वारा ही सम्पन्न कराया था। पूज्य गुरु जी स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य के सौम्य स्वभाव, मृदुभाषी, स्नेहमय और आत्मीयता से परिपूर्ण व्यवहार जैसे श्रेष्ठ गुणों के कारण ही गुरुजी को जनहित चैरिटेबल ट्रस्ट के गरिमामय प्रधान पद का उत्तरदायित्व सौंपा गया और साथ ही उन्हें सिद्धदाता सत्संग सेवा समिति के अध्यक्ष पद का भी दायित्व सौंपा गया। इन दोनों पदों से सम्बद्ध उत्तरदायित्वों को इन्होंने अपनी पूर्ण क्षमता के साथ निभाया है एवं आश्रम के अधूरे कार्यो को सम्पन्न करते हुए पूज्य गुरु जी स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य ने कुशल-कार्य क्षमता, दूर दृष्टि, अनथक परिश्रम जैसे सद्गुणों का परिचय देते हुए अपने सर्वगुणसम्पन्न होने की छवि जनमानस के ह्दय पर अंकित की है।

पूज्य गुरुजी स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य जी ने 19 से 23 अप्रैल 2007 को सिद्धदाता आश्रम में श्रीलक्ष्मीनारायण दिव्यधाम में विभिन्न देवी-देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह सम्पन्न कराकर अपनी अंतर्भूत क्षमताओं का परिचय दिया। समस्त वैष्णव समुदाय एवं संत महन्तों के समक्ष 23 अप्रैल 2007 को पूज्य महाराज जी की उपस्थिति में स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य जी महाराज को उनके उत्तराधिकारी के गरिमामय पद पर अभिषिक्त किया गया। पूज्य गुरु महाराज सुदर्शनाचार्य जी के वैकुण्ठवासी होने के बाद 24 जून 2007 को भक्तों, वैष्णवों, संत महन्तों के समक्ष स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य जी को इन्द्रप्रस्थ एवं हरियाणा पीठाधीश्वर व श्रीमद्जगद्गुरु रामानुजाचार्य के पद पर भी सुशोभित किया गया। यह भव्य कार्यक्रम बड़ा खटला वृदांवन के महन्त स्वामी जयकृष्णाचार्य की अध्यक्षता में चिन्न जीयर स्वामी के तत्वावधान में अनेक संत, महन्तों, जगद्गुरुओं के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ।

लोकहित एवं जनकल्याण की भावना गुरुजी के स्वभाव में समाई हुई है। गुरुजी ने पूज्य वैकुण्ठवासी गुरु महाराज जी के साथ रहते हुए न केवल जनमानस के दु:खों, उनकी आधि-व्याधियों को वैयक्तिक एवं प्रत्यक्ष रूप में अनुभव किया, बल्कि उनके निराकरण की विधाएंएवं विद्याओं को भी आत्मसात् किया। स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य जी देश विदेश में रहने वाले अनगिनत भगवद्भक्तों के कल्याण की कामना से उनके साथ निरन्तर संम्पर्क बनाये रखते हैं। साथ ही साथ उनकी समस्याओं का आध्यात्मिक चिन्तन द्वारा निराकरण करने का सहज भाव भी धारण करते हैं। गुरूजी द्वारा समय-समय पर दिए गये आध्यात्मिक प्रवचनों से भक्तजनों के हृदय में अगाध श्रद्घा और सहज विश्वास का भाव जागृत हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप भक्तजन आपके सौम्य, शांत, स्नेहमय व्यक्तित्व में पूज्य वैकुण्ठवासी महाराज के प्रतिबिम्ब का दर्शन कर आनन्द विभोर हो रहे हैं।

स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य जी के कुशल निर्देशन में आश्रम के चहुँमुखी विकास के साथ सभी अधूरे स्वप्न साकार रूप में सम्पन्न हुए हैं तथा आश्रम में नव-नवायमाण होते हुए अनेक कार्य दिन प्रतिदिन निष्पादित किए जा रहे हैं। गुरुजी आश्रम के सर्वागींण विकास एवं वैष्णव धर्म का प्रचार, लोक कल्याण की कामना से निरन्तर कार्य कर रहे हैं तथा गुरुजी के संरक्षण में श्रीलक्ष्मीनारायण दिव्य धाम एवं जनहित चैरिटेबल ट्रस्ट दिनानुदिन प्रगति मार्ग पर अग्रसर हो रहा है।

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