प्राचीन धूना

इस धूने की खोज श्रीगुरूमहाराज द्वारा की गई थी। आश्रम निर्माण के दौरान यह धूना धरती के नीचे प्राकृतिक रूप से मिला था। गुरूजी हमेशा कहा करते थे कि वह दिव्‍य धाम का निर्माण नहीं बल्‍कि पुन:निर्माण अथवा सुधार कार्य करवा रहे हैं। उनके कहे यह शब्‍द अक्षरश: सत्‍य हैं। यह स्‍थान प्राचीन और ऐतिहासिक काल से ही संतों, ऋषियों की तपोभूमि रही है। यह जगह महर्षि पाराशर से भी जुड़ा रहा है। इस धूने पर बैठकर वैकुण्‍ठवासी स्‍वामी ने असंख्‍य लोगों के जीवन को आलोकित किया और अब यह कार्य श्रद्धेय आचार्यश्री कर रहे हैं। लोगों की व्‍याधाओं का निराकरण करते हुए उनमें वैकुण्‍ठवासी स्‍वामी जी की ही झलक मिलती है। वह इस पवित्र धूने पर अपनी तपश्‍चर्या को भी जारी रखे हुए हैं। इस स्‍थान पर भक्‍तजन आकर मनोवांछित फल श्रद्धा व भाव के अनुरूप पाते हैं।

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