श्री देव दरबार
दिव्यधाम लक्ष्मीनारायण मन्दिर – सिद्धदाता आश्रम के सर्वश्रेष्ठ दिव्य स्वरूप की परिकल्पना पूज्य महाराज के सत्संकल्प के इच्छानुसार परिणत हई है। संगमरमर के सफेद पत्थर से गगन चुम्बी पंच शिखर सम्पन्न यह मंदिर उत्तर भारत के मंदिरों में अद्धितीय है। अपने गुणगाण समुदायों से मण्डित होकर दक्षिण भारत के तिरुपति बालाजी तथा श्री रंगम् की तुलना में अपना स्थान बना रहा है। देश-विदेश के अनेक शिष्यों के द्वारा इसका वर्चस्व सर्वत्र स्थापित हो रहा है। इसमें श्रीलक्ष्मीनारायण, श्री राधाकृष्ण, श्री नृसिंह, श्री सीताराम दरबार, भगवती सिंह वाहिनी दुर्गा, विद्या दायिनी सरस्वती, अष्टसिद्धनव निधि के दाता पवन पुत्र हनुमान जी, श्री गौरी शंकर, श्री गणेश, भाष्यकार रामानुज स्वामी सहित श्री गुरु स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज के नयनाभिराम विग्रह की स्थापना की गई हैं। श्री जी के साथ रमण करने वाले श्रीलक्ष्मीनारायण की मूर्ति प्रतिष्ठा शास्त्रोक्त विधि- विधान से की गयी है। ये सभी प्राण प्रतिष्ठित भव्य मूर्तियां सभी के कल्याण के लिए सर्व सुलभ हैं। यहाँ आकर भक्त लोग असीम शान्ति और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। अतएव इसके महत्व को महिमा-मण्डित करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। सत्संग भवन, प्राचीनधूना, दिव्य आभामय प्रांगण, गरुड़ स्तंम्भ एवं गोपुरम् का समावेश होने से इसमें चार चांद लग गये है। मंदिर की दिव्य आभा चांदनी रात की चन्द्रिका में और अनुपम हो जाती है। पूज्य गुरु महाराज कहा करते थे कि हमारा मंदिर सभी को धैर्य और सुख शान्ति प्रदान करेगा। 21 सुवर्ण कलशों से मंदिर की गरिमा बढ़ रही है। आश्रम वासियों एवं जन साधारण के लिए डिस्पेंसरी की विशेष व्यवस्था है। महाराज की समाधि के पास बगीची की शोभा भी अनुपम है। धूना के पास श्री कृपा स्वरूप श्री वृक्ष, (वेलवृक्ष) एवं चन्दन वृक्ष बगीची की गरिमा बढ़ा रहा है। सर्वाधिक सुरम्य सिद्धदाता आश्रम के वर्तमान अध्यक्ष स्वामी पुरूर्षोत्तमाचार्य जी का मधुर मुस्कान आगन्तुकों के हृदय में अपनी अमिट छाप छोड़ती है। भक्त या आगन्तुक यहाँ आकर अपना दु:ख दर्द स्वामी जी से निवेदित कर आश्वासन पाकर खुशी-खुशी अपने गतंव्य को जाते हैं।