श्री गरुड़ स्तंभ

भगवान् श्री लक्ष्‍मीनारायण के वाहन के रूप में पहचाने जाने वाले गरूड़ जी अपने आराध्‍य की सेवा के लिए सदैव तत्‍पर रहते हैं। पक्षियों के राजा के रूप में पहचान जाने वाले श्री गरूड़ देव जी की शक्‍ति और शक्‍ति की कोई तुलना नहीं है। श्री मंदिर के सामने भगवान् को एकटक निहारने वाले गरूडदेव भक्‍तों के सहज ही आकर्षण का केंद्र होते हैं। उनकी महिमा में एक संपूर्ण पुराण (गरूड़ पुराण) की रचना हुई। परम धाम को जाने वाले श्रीवैष्‍णव के परिजनों को इस पुराण का पाठ सुनाया जाता है। जिससे उन्‍हें इहलोक और परलोक का अंतर समझ में आ सके। वैष्‍णव समाज में संस्‍कार क्रिया में गरूड़ पुराण पाठ की महत्‍ता से भला कौन परिचित नहीं होगा। सेवाव्रतधारियों के लिए आदर्श की मूर्ति श्रीगरूडदेवजी को सुवर्ण मंडित स्‍तंभ पर प्रतिष्‍ठित किया गया है। श्रीवैष्‍णव परंपरा में इनके ही सम्‍मुख साष्‍टांग अथवा दण्‍डवत् कर मंदिर में प्रवेश करने की परंपरा है।

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