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195 ने गुरु से नाम दीक्षा लेकर शुरू की अध्यात्मिक यात्रा
20-02-2022

सेक्टर 44 स्थित श्री सिद्धदाता आश्रम में आज दीक्षा पर्व का आयोजन किया गया। इस अवसर पर 195 लोगों ने श्रीमद जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज से दीक्षा प्राप्त कर भगवान की शरणागति ली।

इस अवसर पर स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज ने बताया कि दीक्षा पर्व व्यक्ति के जीवन की दूसरी शुरुआत है, इसे अध्यात्म में दूसरे जन्म की भी संज्ञा दी गई है। उन्होंने कहा कि भाष्यकार रामानुज स्वामी जी ने शोक रोग से संतप्त संसार को अध्यात्म का ज्ञान देकर, भक्तियोग सिखाकर भगवान की ओर उन्मुख किया। उन्होंने भगवान को प्राप्त करने की विधि आम जनमानस को उपलब्ध करवाई। यही कारण है कि सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी शिक्षाओं को मानने वालों की संख्या करोड़ों में है। उन्होंने कहा कि रामानुज संप्रदाय में बिना किसी भेदभाव के स्त्री, पुरुष, बुजुर्ग एवं बच्चों सभी को दीक्षा देने का प्रावधान है। इसलिए इस दीक्षा को धर्म में आस्था रखने वाले व्यक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

हमारे संप्रदाय के चिन्ना जीयर स्वामी जी द्वारा इसी माह हैदराबाद में रामानुज स्वामी जी की मूर्ति स्थापित की गई है जो दुनिया में दूसरी सबसे ऊंची बैठी मूर्ति है। इसका लोकार्पण प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा किया गया है। इस कार्य के लिए हम चिन्ना जीयर स्वामी जी एवं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हैं।

उन्होंने बताया कि भाष्यकार रामानुज स्वामी ने संसार को नाम की महिमा का महत्व समझाया है और भगवान नारायण से उनकी शरण लेने वाले भक्तों को मुक्ति प्रदान का वचन भी भरवाया है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि रामानुज संप्रदाय में दीक्षित व्यक्ति को पुन: मृत्युलोक में नहीं आना पड़ता है। इसी प्रकार श्री सिद्धदाता आश्रम में विश्वास रखने वालों को भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है। उन्होंने सभी दीक्षार्थियों से सहज, सरल परन्तु उच्च अध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा दी।

इससे पहले सभी ने यज्ञ कर अपने पूर्व जन्मों के कर्मों से मुक्ति की प्रार्थना की। वहीं स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी ने उनके बाजुओं पर संप्रदाय के चिन्ह शंख एवं चक्र भी लगाए और उनके कान में नाम मंत्र प्रदान किया। इसके बाद सभी ने गुरु एवं भगवान के प्रति दण्डवत होकर शरणागति का भाव प्रकट किया और जीवन में अध्यात्मिक विचारों को स्वीकार करने का प्रण दोहराया।



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