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दिव्यधाम में महाशिव की आराधना
01-01-1970

श्री सिद्धदाता आश्रम स्थित श्री लक्ष्मीनारायण दिव्यधाम में गुरुवार को आयोजित श्री महाशिवरात्रि महोत्सव में विराजित भगवान शिव का पूर्ण वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पंचामृत, गंध, पुष्प, अक्षत सहित अभिषेक किया गया। श्री दिव्यधाम में पहुंचे सैकड़ों श्रद्धालुओं और हरिद्धार एवं गढग़ंगा से कांवड लाने वाले अनेक भक्त भी शामिल हुए, जिन्होंने इस दिव्यधाम के अधिष्ठाता अनंत श्री विभूषित इंद्रप्रस्थ एवं हरियाणा पीठाधीश्वर श्रीमद् जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज के साथ भगवान शंकर का गंगाजल तथा पंचामृत से अभिषेक किया। श्री रामानुज संप्रदाय की परंपरा के अनुसार यहां पर भगवान शिव के पिंडी स्वरूप की जगह उनके मूर्त रूप का अभिषेक किया जाता है जिसकी वजह से भी यहां पर हजारों की संख्या में भक्त जुटते हैं।

इस अवसर पर स्वामी सुदर्शनाचार्य संस्कृत वेद वेदांग महाविद्यालय के छात्रों, आचार्यों एवं दिव्यधाम के महंतों के साथ पूर्ण विधि विधान के साथ भगवान की पूजा अर्चना की। श्रीमद् जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज ने महोत्सव का शुभारम्भ स्मृति स्थल में वैकुण्ठवासी जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी महाराज की पूजा अर्चना और आरती के साथ किया। इसके बाद उन्होंने श्री लक्ष्मीनारायण दिव्यधाम में युगल सरकार श्री लक्ष्मीनारायण भगवान एवं अन्य श्रीविग्रहों की पूजा अर्चना की। इसके उपरांत वैकुण्ठवासी स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज की प्रतिमा के सम्मुख सर्वमंगल की प्रार्थना की।

इस अवसर पर श्रद्धालुओं को दिए प्रवचन में महाराजश्री ने बताया कि शिव परिवार को देखने पर अनेक विरोधाभाष नजर आते हैं, लेकिन उनके आपस का स्नेह एवं जीव मात्र के प्रति उनकी सहिष्णुता के गुण को सभी को अंगीकार करना चाहिए। उन्होंने बताया कि भगवान भास्कर भस्म रमाते हैं एवं बाघंबर बांधते हैं, वहीं माता पार्वती शक्ति त्रिपुर सुंदरी हैं। दोनों में इतना विरोधावास होने के बावजूद कभी कोई विवाद अथवा मनमुटाव की स्थिति नहीं रही। ऐसे ही उनके परिवार में उनके पुत्र श्रीगणेश, कार्तिकेय व उनके वाहन भी परस्पर वैरी होते हुए भी कभी भी एक दूसरे के विरोधी नहीं हुए। ऐसे ही हमें भी अपने घर, परिवार व समाज के साथ स्नेह, सहयोग एवं समर्पण के साथ जीवन जीना चाहिए। महाराजश्री के प्रवचन के बाद श्रद्धालु भक्तों को प्रसाद एवं लंगर प्राप्त हुआ। इस अवसर पर स्वामी मधुसूदनाचार्य जी महाराज भी उपस्थित थे।



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