गुरूजी के संदेश

जो दूसरों के सद गुणों को ही देखकर उन्हे ग्रहण करता है, वह अपने आप को सुधार लेता है।

इसके विपरीत जो दूसरों के दुर्गुणों को ही देखता है तो अपने आप को सुधारने के बजाय दूसरों के अवगुणों को मन में एकत्रित करते हुए अपने आपको बरबाद कर लेता है।

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