लक्ष्य निर्धारित करने का नाम है नामदान - आचार्यश्री
01-01-1970
नामदान लक्ष्य निर्धारण करने का नाम है। नामदान लेने वाले को यह पक्का विश्वास होना चाहिए कि अब उसके संकटों का विनाश निश्चित है, उसे यह दृढ निश्चय कर चाहिए कि अब वह सत्य मार्ग चलेगा जिसका नाम परमात्मा है। नामदान कि प्रक्रिया द्वारा गुरु ने यह मार्ग बताया है, उसके कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। गुरु महाराज की शिक्षाएं ऐसे ही जीवन में कल्याणकारी होंगी।
रामानुज परंपरा में आया है कि नामदान पाने वाले के उस दिन तक के पाप स्वयं नष्ट हो जाते हैं, लेकिन इसके बाद भी देखने में आता है कि कुछ लोग हमेशा रोते रहते हैं कि हम पर कृपा नहीं रहती है, क्या हमारा भाग्य है, हमने किसी का क्या बिगाड़ा है आदि आदि। ऐसे लोग समझ लें कि नामदान गुरु की उपस्थिति में की गयी एक प्रतिज्ञा है कि भगवन अब तक जो किया सो किया, आगे से वही करूँगा जो तुझे अछा लगता है, मैं तेरा अच्छा बच्चा बनूँगा। गुरु महाराज जैसे बताएँगे मैं आपका नाम जपूंगा और कर्म करूँगा।
लेकिन होता इसके ठीक उलट है। लोग नामदान लेने के बाद भूल जाते है। वह फिर से उन्ही कर्मों में लिप्त हो जाते हैं, जैसे कि पहले से करते आ रहे थे। जब गुरु का सन्देश माना ही नहीं, परमात्मा कि राह पकड़ी ही नहीं। तो कहाँ से कृपा मिलेगी। जो लोग नामदान लें, वह सत्य बोलने, मांसाहार न लेने, मदिरा पान न करने, दूसरों से ईर्ष्या न करने, परनिंदा न करने, गुरु निंदा न करने, जनेऊ धारण कर उसके नियमों का पालन करने, यथासम्भव तिलक धारण करने, परमात्मा के नाम जप करने, गुरु स्थान में आस्था रखने, स्वयं की शुद्धि का ख्याल रखने, दूसरों को पीड़ा न पहुँचाने और एक नारायण पर अटल विश्वास रखने का लक्ष्य बनायें। ऐसा करने वालों की मुक्ति होगी, इसमें कोई संशय नहीं। श्री गुरु महाराज ने ये प्रवचन दिव्यधाम में आयोजित नामदान कार्यक्रम में भक्तो को कहे। इस दिन करीब 450 भक्तों ने नामदान के माध्यम से प्रभु की शरण ली।